01-03-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

सिद्धि-स्वरूप बनने की सहज विधि

सभी मास्टर त्रिकालदर्शी बने हो? त्रिकालदर्शी बनने से कोई भी कार्य असफल नहीं होता। कोई भी कार्य करने के पहले अपने मास्टर त्रिकालदर्शी की स्थिति में स्थित होकर कार्य के आदि-मध्य-अन्त को जानकर कर्त्तव्य करने से सदैव सफलता मिलेगी अर्थात् सफलतामूर्त्त बन जायेंगे वा सम्पूर्णमूर्त बन जायेंगे। अभी जो गायन है कि योगियों को रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है, वह कौनसी सिद्धि? संकल्प की सिद्धि और कर्त्तव्य की विधि। यह दोनों ही होने से जन्मसिद्ध अधिकार सहज ही पा लेते हो। संकल्प की सिद्धि कैसे आयेगी, मालूम है? संकल्पों की सिद्धि न होने का कारण क्या है? क्योंकि अभी संकल्प व्यर्थ बहुत चलते हैं। व्यर्थ संकल्प मिक्स होने से समर्थ नहीं बन सकते हो। जो संकल्प रचते हो उसकी सिद्धि नहीं होती है। व्यर्थ संकल्पों की सिद्धि तो हो नहीं सकती है ना। तो संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करने के लिए मुख्य पुरूषार्थ यह है - व्यर्थ संकल्प न रच समर्थ संकल्पों की रचना करो। समझा? रचना ज्यादा रचते हो, इसलिए पूरी पालना कर उन्हों को काम में लगाना यह कर नहीं सकते हो। जैसे लौकिक रचना भी अगर अधिक रची जाती है तो उनको लायक नहीं बना सकते हैं। इसी रीति से संकल्पों की जो स्थापना करते हो वह बहुत अधिक करते हो। संकल्पों की रचना जितनी कम उतनी पावरफुल होगी। जितनी रचना ज्यादा उतनी ही शक्तिहीन रचना होती है। तो संकल्पों की सिद्धि प्राप्त करने के लिए पुरूषार्थ करना पड़े। व्यर्थ रचना बन्द करो। नहीं तो आजकल व्यर्थ रचना कर उसकी पालना में समय बहुत वेस्ट करते हैं। तो संकल्पों की सिद्धि और कर्मों की सफलता कम होती है। कर्मों में सफलता की युक्ति है - मास्टर त्रिकालदर्शी बनना। कर्म करने से पहले आदि,मध्य और अन्त को जानकर कर्म करो, ना कि कर्म करने के बाद अन्त में परिणाम को देखकर फिर सोचो। इसलिए सम्पूर्ण बनने के लिए इन दो बातों का ध्यान देना पड़े।

यह प्रवृत्ति वाला ग्रुप है। तो प्रवृत्ति में रहते इन दोनों बातों का ध्यान देने से सर्विसएबल बन सकेंगे। सर्विस सिर्फ मुख से नहीं होती लेकिन श्रेष्ठ कर्मों द्वारा भी सर्विस कर सकते हो। यह जो ग्रुप आया है अपने को सर्विसएबल ग्रुप समझते हो? इस ग्रुप में जो अपने को सर्विसएबल समझते हैं वह हाथ उठायें। अब जिन्होंने सर्विसएबल में हाथ उठाया है, वह सर्विस में समय निकाल मददगार बन सकते हैं? माताओं की मदद से बहुत नाम बाला हो सकता है। जितने आये हैं उतने सभी हैंड्स सर्विस में मददगार बन जायें तो बहुत जल्दी नाम बाला कर सकते हो। क्योंकि युगलमूर्त बन चलने वाले हो। इसलिए ऐसे युगल सर्विस में बहुत अपना शो कर सकते हो। ऐसे कर्त्तव्य करके दिखाओ जो आपके कर्त्तव्य हर आत्मा को आपकी तरफ आकर्षण करें। माताओं का ग्रुप, सो भी ऐसी मातायें जो कि युगल रूप में चल रही हैं उनको समय निकालना सहज हो सकता है। अभी भी समय निकाल कर आई हो ना। अभी भी आप के पीछे प्रवृत्ति चल रही होगी ना। जैसे यह बात ज़रूरी समझकर बन्धनों को हल्का कर पहुँच गई हो, ऐसे समय-प्रति-समय अपनी प्रवृत्ति के बन्धनों को हल्का कर सर्विस में जितनी मददगार बनती जायेंगी उतना ही यह हिसाब-किताब जल्दी चुक्तू होगा। तो माताओं को ऐसे मददगार बनने में ही अपनी उन्नति का साधन समझना चाहिए। सुनना और सुनाना -- दोनों ही अनुभव करना चाहिए। जैसे बाप मददगार बनते हैं वैसे बच्चों को भी मददगार बनना है। यही मदद लेना है। तो ऐसी इस ग्रुप् में शक्ति भरकर जाना जो अपने बन्धनों को हल्का कर सर्विस में मददगार बन सको। नहीं तो इस सब्जेक्ट में अगर कमी रह गई तो फुल मार्क्स कैसे ले सकेंगे। लक्ष्य तो फुल पास होने का रखा है ना। इसलिए इस ग्रुप को खास ऐसी-ऐसी युक्तियां रचने की ट्रेनिंग लेकर जाना है। भट्ठी से क्या बनकर जाना है, समझा? सर्विसएबल और मददगार। घर में रहते शक्ति-स्वरूप की स्मृति सदैव रहने से कर्म-बन्धन विघ्न नहीं डालेंगे। घर में रहती हो लेकिन शक्तिरूप की बजाय पवित्र प्रवृत्ति का भान ज्यादा रहता है। प्रवृत्ति में रहते हुए शक्तिपन की वृत्ति कम रहती है। इसलिए अब तक जो आवाज़ निकलता है कि कर्म-बन्धन है, क्या करें, कैसे करें, कैसे कर्म-बन्धन काटें। यह आवाज़ इसलिए निकलता है क्योंकि शक्तिपन का अलंकार सदैव कायम नहीं रह पाता। तो अब इस भट्ठी में अपनी स्मृति और स्वरूप को बदल कर जाना। इसलिए दो बातें सदैव याद रखना। एक तो चेन्ज होना है, दूसरा चैलेन्ज करना है। शक्ति रूप में अपनी वृत्ति और स्वरूप को भी चेन्ज करना और जितना-जितना अपने को चेन्ज करते जायेंगे उतना औरों को चेलेन्ज कर सकेंगे। इसलिए यह दो बातें याद रखना। जब सुकर्म करते हो तो बाप का स्नेही स्वरूप सामने आता है और अगर कोई विकर्म करते हो तो विकराल रूप सामने लाना चाहिए। आप लोग स्नेही तो हो ना। स्नेही सदैव सुकर्मा होते हैं। कोई भी ऐसा कर्म न हो - यह सदैव स्मृति में रखना। क्योंकि आप सभी सृष्टि के स्टेज पर हीरो एक्टर्स हो। तो हीरो एक्टर्स पर सभी की निगाह होती है। इसलिए अपने को प्रवृत्ति में रहने वाली न समझ, स्टेज पर हीरो एक्टर समझकर हर कर्म करती चलेंगी तो कोई भी ऐसा कर्म नहीं हो सकेगा।

जैसे साइन्स की परमाणु शक्ति आज क्या से क्या दिखा रही है। वैसे ही साइलेन्स के शक्तिदल में आप प्रवृत्ति में रहने वाली प्रमाण हो। वह परमाणु शक्ति है और आप लोग सृष्टि के आगे एक प्रमाण हो। तो आप भी प्रमाण बनकर बहुत ही सर्विस कर सकती हो। माताओं की तो बहुत मांगनी है। माताओं के कारण कोने-कोने में संदेश फैलाना अभी रहा हुआ है। कई आत्माओं को सन्देश न मिलने की ज़िम्मेवारी आप लोगों के ऊपर है। इसलिए इस ग्रुप को ऐसा ही तैयार हो जाना है। यह ग्रुप समय-प्रति-समय सर्विस में मददगार बन सकता है। उम्मीदवार है। जैसे अधरकुमारों का ग्रुप भी बहुत उम्मीदवार ग्रुप था। ऐसे ही यह ग्रुप भी होवनहार मददगार है। लेकिन कैसे मददगार बने, उसकी युक्ति भी है। लेकिन शक्ति नहीं है। इसलिए अपने स्वरूप परिवर्तन का, अपनी टीचर से सर्टिफिकेट ले जाना। जैसे एक-एक कुमारी 100 ब्राह्मणों से उत्तम गाई हुई है वैसे एक-एक माता जगत् माता है। कहाँ 100 ब्राह्मण, कहाँ सारा जगत। तो किसकी ऊंची महिमा हुई? एक-एक माता जगत्माता बनकर जगत की आत्माओं के ऊपर तरस, स्नेह और कल्याण की भावना रखो। इसलिए इस ग्रुप को एक वायदा करना है। वायदा करने की हिम्मत है? कौनसा भी वायदा हो कि सुनने के बाद हिम्मत रखेंगे? सुनने के पहले हिम्मत है वा सुनने के बाद हिम्मत रखेंगे? क्या समझती हो? जो भी वायदा होगा उसकी हिम्मत है? अगर कोई कड़ा वायदा हो तो फिर सोचेंगी ना। हरेक को यह वायदा करना है कि समय-प्रति-समय मैं सर्विस में मददगार और साथ-साथ शक्ति-स्वरूप बन विघ्न-विनाशक बनकर ही प्रवृत्ति में रहेंगी। सहज वायदा है ना। विघ्नों के आने से चिल्लायेंगे नहीं, घबरायेंगे नहीं, लेकिन शक्ति बनकर सामना करेंगे। यह वायदा अपने आप से सदैव के लिए करके जाना है।

कोई भी प्रकार की आसक्ति है तो वहां ही माया भी आ सकती है। आसक्ति होने के कारण माया आ सकती है। अगर अनासक्त हो जाओ तो माया आ नहीं सकती। जब आसक्ति खत्म हो जाती है तब शक्तिस्वरूप बन सकते हैं। अपनी देह में वा सम्बन्धों में, कोई भी पदार्थ में, कहाँ भी अगर आसक्ति है तो माया भी आ सकती है और शक्ति नहीं बन सकते। इसलिए शक्तिरूप बनने के लिए आसक्ति को अनासक्ति में बदली करो। जैसे आप लोग औरों को कहते हो कि एक दीपक अनेकों को जगा सकता है। ऐसे ही आप एक-एक सारे विश्व के कल्याण के निमित्त बन सकते हो। तो अपने कर्त्तव्य को और अपने स्वरूप को दोनों को याद रखते हुए चलते चलो। ब्रह्मा की भुजायें हो ना। तो हेण्ड्स बनेंगे ना। अपने को ब्रह्मा की भुजायें समझती हो? ब्रह्मा की भुजाओं का भी कर्त्तव्य क्या होता है? ब्रह्मा का कर्त्तव्य है स्थापना; तो ब्रह्मा की भुजाओं का भी कर्त्तव्य हुआ स्थापना के कार्य में सदैव तत्पर रहना। हद के सम्बन्धों में आने का सिर्फ इन्हों को तरीका सिखाना है। निर्बन्धन अपने को बना सकती हो, लेकिन तरीका नहीं आता है। एक तो तरीका नहीं, दूसरी ताकत नहीं। तो ताकत भी भरना और तरीका भी सीखना। बापदादा फिर भी उम्मीदवार ग्रुप समझते हैं। अब देखेंगे कि हरेक अपने को कितना बार ऑफर करते हैं। अपने आप को खुद ही ऑफर करना है। आफरीन उनको मिलती है जो स्वयं को खुद आफर करता है। अगर कहने से करते हैं तो आफरीन नहीं मिलती है। अब देखेंगे कि कौन-कौन अपने को ऑफर करते हैं। स्नेही तो हो लेकिन स्नेही के साथ सहयोगी भी बनो। इस ग्रुप का नाम क्या रखें? नाम-संस्कार होता है ना। क्योंकि परिवर्तन-भट्ठी में आये हो। आप लोग भी नाम-संस्कार के उत्सव में आये हो ना। इस ग्रप का क्या नाम? यह है सदा सहयोगी और शक्तिस्वरूप ग्रुप। अब अपनी शक्ति कभी भी कम नहीं करना। जब अपनी शक्ति को गंवा देते तो रावण भी देखता है कि यह अपनी शक्ति को गंवा बैठे हैं, तो वह खूब रूलाता है। शक्ति गंवाना अर्थात् रावण को बुलाना। इसलिए कभी भी अपनी शक्ति को कम न होने देना। जमा करना सीखो। भविष्य 21 जन्मों के लिए शक्ति को जमा करना है। अभी से जमा करेंगे तो जमा होगा। इसलिए सदैव यही सोचो कि जमा कितना किया है? अच्छा।